मेरा मन कहता है
मै गढ लूंगी तुम्हें
तुम मिट्टी कोमल से
आकार दूंगी तुम्हें
मेरा मन कहता है
मै गढ लूंगी तुम्हें
तुम रूखे हो सख्त नहीं
तुम अग्नि हो जल नहीं
मै तप लूंगी तुम्हें
मेरा मन कहता है
मै गढ लूंगी तुम्हें
छोड़ दोगे स्वंय को
तुम तुम ना रह पाओगे
शक्ल मेरी तेरे चेहरे में
घोल दूंगी तुम्हें
मेरा मन कहता है
मै गढ लूंगी तुम्हें
कोमल हृदय के तुम प्रीतम
घुल जाओगे मुझमें ऐसे
चंदन पानी पानी चंदन
प्रीत की रीत है मन बंधन
तर लूंगी तुम्हें
मेरा मन कहता है
मै गढ लूंगी तुम्हें
तुम सागर मै नदी सरीखी
तुममें तर लूंगी मै
चाँद तुम गगन के मेरे
अर्पण चाँदनी तुम्हें
मेरा दिल कहता है
मै गढ लूंगी तुम्हें
कान्ता राॅय भोपाल
कान्ता राॅय भोपाल
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