आज तुम्हारी
विदाई थी मेरे घर से
आँखों के साथ
दिल भी बहुत रोया था
जाते हुए देर तक
निहारती रही थी मै तुमको
उम्मीद थी कि तुम
जाने से इंकार कर दोगी
अचानक से
और मै
गले से लगा कर
रख लुंगी तुम्हें
सदा के लिये
मै निराश हुई
तुमने पलट कर
नहीं देखा एक बार भी
लौटना मेरा
मेरे ही घर में दुबारा
तेरे बिना मुनासिब ना हुआ
मैने भी छोड़ दी
वो गलियाँ उन चौबारे को
जहाँ तुम नहीं
वहाँ अब क्या काम मेरा
कान्ता राॅय भोपाल
कान्ता राॅय भोपाल
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