रमेश चला गया ...बिना बताये युँ ही अचानक से । रागिनी जिंदगी की तनहाईयों में उसके साथ बीते पलों में उसे याद कर तलाशती रहती ।
याद है एक दिन कैसे रमेश पहली बार उसके ब्युटी पार्लर में कुछ काॅस्मेटिक बेचने आया था ।
नही लेना था कुछ भी , फिर भी कैसा सम्मोहन था उसमें कि जो ना चाहिए था वो सब भी खरीद लिया था उससे ।
उसका आना बढने लगा था और रागिनी का खुद को खोते जाना उसमें ।
नही लेना था कुछ भी , फिर भी कैसा सम्मोहन था उसमें कि जो ना चाहिए था वो सब भी खरीद लिया था उससे ।
उसका आना बढने लगा था और रागिनी का खुद को खोते जाना उसमें ।
प्यार परवान चढा ही था कि अचानक उसका आना बंद हो गया । वो दिवानी सी उसको ढुंढती फिरती यहाँ वहाँ ।
वो नहीं आया । कई महीने कई साल बीत गये ।
रागिनी अब लोगों में रमेश का चेहरा ढुंढने लगी थी ।
सोमेश को प्यार किया रमेश के रूप में क्योंकि उसके बाल बिलकुल रमेश की ही तरह थे घुंघराले से ।
राकेश के तीखे नक्श में भी रमेश की छाया थी , इसलिए राकेश से भी प्यार किया रागिनी ने जी भर के ।
मुकेश को पीछे से रमेश समझ कर ही आवाज दे बैठी थी एकदिन , लेकिन वो भी एक अक्श ही निकला था रमेश कहीं नही ।
वो दिवानी सी झूमती रहती थी कई रमेशों के अक्श के साथ ।
कितने रमेश आये और गये लेकिन रमेश था क्या सबमें निहित ?
सात वर्ष जवानी के बिता दिया ऐसे ही ।
आज अचानक एक बडे उद्यमी के रूप में रमेश उसके सामने खड़ा था ।
आज अचानक एक बडे उद्यमी के रूप में रमेश उसके सामने खड़ा था ।
वो कहता जा रहा था उसे अपनी जीत की कहानी और रागिनी तलाश रही थी एक और रमेश के अक्श को रमेश के ही रूप में ।
कान्ता राॅय
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