कितना अच्छा होता
गर आँखें न होती
न दिखता दोहरा चेहरा
ना रंग रूप की चर्चा होती
संवेदनाएँ रहती सच्ची वाली
छुअन में अपनापन होता
कितना अच्छा होता
गर आँखें ना होती
कानो में स्वर सच्चा सदा
गुंजन गुंजन करती रहती
जिव्हा का स्वाद चखन भी
होता रसना सच्चा वाला
झुठी मुठी बातें ना होती
कितना अच्छा होता
गर आँखें ना होती
छल छलावा दुनियाभर का
ना समझी की बातें ना होती
कितना अच्छा होता
गर आँखें ना होती
खुश्बू से महकती इंसानियत
इंसानो में ऐसी खुश्बू होती
महक महक संसार महकता
दाग दगा की बातें ना होती
कितना अच्छा होता
गर आँखें न होती
कान्ता राॅय भोपाल
कान्ता राॅय भोपाल
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