आधी रात को चुपके से सिरहाने के नीचे रखा सोने का मंगलसूत्र निकाल अपने हथेली पर रख देखने लगा ।
खिड़की की झिडी से आती चाँदनी में सोने का मंगलसूत्र झिलमिला उठा था ।
खिड़की की झिडी से आती चाँदनी में सोने का मंगलसूत्र झिलमिला उठा था ।
आज पहली बार बडी हिम्मत करके बडी़ बिन्दी वाली औरत के गले से छीन कर भागा था । नहीं मालूम था कि कितना तेज दौड़ने से वो बच निकलेगा ।
पकडे जाने का डर बना हुआ था । पसलियों और कंधों को मजबूती से दृढ़ कर भाग रहा था ।
पकडे जाने का डर बना हुआ था । पसलियों और कंधों को मजबूती से दृढ़ कर भाग रहा था ।
घंटों दौड़ने के बाद भी वह रूकना नहीं चाहता था । पहली बार मंगलसूत्र जो छीना था उसने ।
बडी़ सी बिंदी वाली के माँग में सिंदूर दमक रहा था । उसने बस माँग भर देखा था सिंदूर से भरा हुआ ,चेहरा नहीं देखा था उसका । कैसा था उसका चेहरा ...!
सहसा उसके चेहरे की परछाई में उसे अपनी माँ का सिंदूर भरा माँग कौंध गया ।
सहसा उसके चेहरे की परछाई में उसे अपनी माँ का सिंदूर भरा माँग कौंध गया ।
हाथ में रखे मंगलसूत्र की कटोरियों में अचानक माँग का सिंदूर भर गया ....वो सहम सा गया । गीला गीला सा कुछ रिसने लगा था मंगलसूत्र की कटोरियों से । उसके हाथ अब काँप रहे थे ।
काली मोतियों की लड अचानक बढने लगीं । बढते - बढते गले तक जा पहुँची । बंधन कसने लगा था । उसका दम अब घुट रहा था । चाँदनी भी लाल हो गई , उसी माँग के सिंदूर सी ।
सहसा लाल रंग खून के रंग में बदलने लगा ।
सहसा लाल रंग खून के रंग में बदलने लगा ।
हाथ में मंगलसूत्र लिए , बंधन से जकड़े गले के साथ ..घर से बाहर निकल कर वह अब फिर से दौड़ने लगा ...अपने पसलियों और कंधों को मजबूती से दृढ़ करके ।
भागते - भागते पौ फट चुकी थी और वो पुलिस स्टेशन में जाकर पस्त हो गिर पडा़ ।
सिंदूर में डूबा हुआ गीला चिपचिपा रक्तिम मंगलसूत्र के बंधन से अब वह आजाद हो जेल की कोठरी में सुख की नींद ले रहा था ।
कान्ता राॅय
भोपाल
भोपाल
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