जाने क्या कहना था मुझे
याद करते करते भूल गई
एक तुम्हारे आने भर से
सारे जमाने भूल गई
पास आये बैठे
पल भर के लिए
कानों में मीठी सी
एक नज्म सुना गये
मै खोयी रही
सुध बुध अपनी
होश आते ही मैने
खुद को अकेला पाया
क्युं आये थे करीब तुम
क्या तुम्हारा
मकसद रहा मुझसे
मेरा देना तो
मुझे याद नहीं
जाने क्या लेकर
तुम चले गये
खुद में कुछ खोती हुई
तो पाती हूँ
पर क्या खोया
ये मालूम नहीं
कान्ता राॅय भोपाल
कान्ता राॅय भोपाल
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