रात के सन्नाटे में
गुँजती रहती है
आँहे किसकी
नींद में भरी
सारी दुनिया
सोती रहती है
जाने क्यों
मेरी ही आँखों से
उसकी दुश्मनी कैसी
नींद की मुझसे
मेरी नींद से
अटखेलियाँ रहती है
लोग आते जाते हुए
क्यों नही सुन पाते है
क्यों मेरी ही कानों में
ये अक्सर गुंजा करती है
सारी दुनिया
सन्नाटे में
चैन से सोती है
नींद की मुझसे
मेरी नींद से
अटखेलियाँ रहती है
सहसा मुझे
आज ऐसा लगा
कहीं किसी दिल के
कोने मे
ये सिसकियां
ये आँहे
कहीं मेरे अंदर ही
समाहित तो नही
शायद इसलिए
नींद की मुझसे
मेरी नींद से
अटखेलियाँ रहती है
कान्ता राॅय भोपाल
कान्ता राॅय भोपाल
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