शनिवार, 14 मार्च 2015

रिपोर्ट (लघुकथा )

"साहब , कितनी देर से बैठा हूँ थाने में अब तो रिपोर्ट दर्ज कर दीजिये । "

" मामला क्या है ? "-- उचटती नजर से थानेदार ने पूछा तो लगा कि अब शायद काम हो जाये ।

" साहब , बेटी को घर से कुछ गुंडे उठा कर ले गये । "-- रामलोचन लगभग रो पडा था ।

"अरे ,  फिर से लौंडा लौंडिया का केस ? " -- रामलोचन के आँसुओं से बेपरवाह थानेदार खीज उठा था ।

"जाओ थोड़ी देर बाहर बैठो । दुसरा  तुम्हारा केस देखेगा । अभी मै मंत्री जी के महत्वपूर्ण केस में उलझा हूँ । "--

रामलोचन को रह रह कर बेटी का बेबस चेहरा उतावला कर रहा था ।

" पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट लिखवाने के लिए भी जिगर और ओहदा चाहिए भाई  । यह जगह मजबूरो के लिए नहीं शायद  ..!!  "--- समीप में बैठा एक और लाचार रामलोचन को देख मुस्कुरा रहा था ।

कान्ता राॅय
भोपाल

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