बेटों की पूरी कमाई का हिसाब पहली तारीख़ को रमा आँगन की चारपाई पर बैठ कर बडी अकड़ के साथ लेती थी ।
अपनी सिरहाने तले रखी पेटी में जोड़ रखी थी जीवन की सारी बचत पूँजी ।
बहुऐं कभी नजर उठा कर भी सास को नहीं देखती थी ।
"जिंदगी भर इस बुढिया ने कभी पेट भर खाने नहीं दिया । अच्छा पहनने नहीं दिया । पूरे घर पर कुंडली मार कर बैठी रही है आजतक । आज चलो तोड़ते है बुढिया की पेटी । "-- जिंदगी भर की जोडी हुई माया आज बहुओं के हाथ आ गई थी ।
घर के बाहर चारपाई पर रमा लकवाग्रस्त असहाय अपनी माया के लुट जाने के गम में से मन ही मन अपनी माया से मोह तोड़ रही थी ।
कान्ता राॅय
भोपाल
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