सत्य ही सर्वश्रेष्ठ था । उसे दंभ था अपनी अडिगता पर । दंभ क्या टिका है कभी ...??
वो देखो ! उसी के घर में भ्रष्टाचार ने धीरे से पैर पसार लिया । चमक जाने कितनी समाये हुए था कि सत्य का दंभ टुट कर रह गया है ।
जाने अनजाने ... चाहे अनचाहे ... हम सबने अपने प्यारे सत्य को अकेला छोड़ दिया और चले आये भ्रष्टाचार के महफिल में ताली बजाने ।
भ्रष्टाचार अपने जीत के दर्प में चूर हुआ है ।
उसे शायद मालूम नहीं कि सत्य अभी भी कहीं जिंदा है ।
कान्ता राॅय
भोपाल
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