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"मम्मा मेरी " - कहते हुए आरूष गले से लग गया नेहा के ।
" क्या बात है मेरा बेटा आज बडा खुश है ! कहीं प्यार तो नहीं हो गया तुझे ? "-- कान खींचते हुए जब नेहा ने आरूष की ओर गहरी नजर से देखा तो वह शरमा कर झेंप गया ।
"मम्मा तुम भी ना ! क्या मै तुमसे वैसे ही गले नहीं लगता कभी ?" -- आरूष की चोर नजरों को मम्मा पकड़ चुकी थी ।
" चल बता भी दें उसका नाम ! ज्यादा नखरे मत दिखाओ ! कहीं वो तेरी आॅफिस वाली मानसी आहूजा तो नहीं ? "-- नेहा मुस्कराहट के साथ पूछ रही थी ।
आरूष सोच रहा था मम्मा को देखते हुए कि मम्मा कैसे जान लेती है मेरी सारी कही अनकही बातें ।
कान्ता राॅय
भोपाल
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