मै सोई हूँ तो यह कौन मेरे अंदर का जाग रहा है ? क्यों इसकी शक्ल मुझसे मिलती है ?
"तुम क्या कर रही हो यहाँ ?
तुम्हारा क्या काम है मुझसे ? "
यह जबाव क्यों नहीं देती है ? मुझे देख कर सिर्फ मुस्कुरा रही है ।
उफ्फ !! क्या यह मेरी खिल्ली उडा रही है । इसे देख कर क्यों मुझे कोफ्त सी हो रही है ।
" क्या तुम मुझे डराने आई हो ? मै क्यों डरूँ तुमसे यह बताओ जरा ? "
" मै अंतरआत्मा हूँ तुम्हारी इसलिए तुम्हारे मन का सब बातों को जानती हूँ । कुछ भी छिपा नहीं मुझसे । इसलिए तुम्हारी दोहरे चरित्र पर मुझे हँसी आ रही है । "
कान्ता राॅय
भोपाल
बहुत उम्दा। लगता सचमुच आपके मन की व्यथा हे।
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