शनिवार, 14 मार्च 2015

होली के रंग (लघुकथा )

आज पति का मन कृष्ण से गौरांग हो गया था । वो द्रोपदी का सखा स्वरूप हो गया था ।

हाथ लेकर हाथों में अपने  सखा से कहा  , " सब गाँठ खोल दो । मन के सारे राज बोल दो । " पत्नी चकित थी और बहुत खुश थी । आज उसे अपने पर गुमान हो आया था । दोस्त को जो राजदार बनाया था ।

हठात् पति फिर से कृष्ण मन का हो गया । कृष्ण रंग पोत कर पत्नी के मुँह पर सखा से पति हो गया ।
कालिख  पत्नी के चेहरे का होली के रंग में छुप गया ।

कान्ता राॅय
भोपाल

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