शनिवार, 14 मार्च 2015

जननी(कविता )

तु सृजन करके नारी
उपनामों तले दबती है
क्यों नहीं संसार से
विद्रोह  बिगुल बजाती है

तु जननी जगत सृष्टा की
तुमसे दुनिया सारी है

तु जननी है जीवन की
तुझसे ही सृष्टि सारी है
तु अगर ठान ले मन में
कदमों में दुनिया सारी है

तु जननी जगत सृष्टा की
तुमसे दुनिया सारी है

कितना कठिन हो  अगर
तु इंकार कर दे मातृत्व से
क्या रहेगा संसार सृजन में
सृष्टि संचारित नारीत्व से

तु जननी जगत सृष्टा की
तुमसे दुनिया सारी है

करो उद्घोष मन मानव मे
हो प्रवाह नव चेतना का
करो हृदय से स्वीकार
कामना  करो सद्भावना  का

तु जननी जगत सृष्टा की
तुमसे दुनिया सारी है

नारी में  ही नर होता
नर में नारी कहीं नहीं
दे दो उसको उसका जीवन
बिन नारी तुम कही नहीं

तु जननी जगत सृष्टा की
तुमसे दुनिया सारी है

कान्ता राॅय
भोपाल

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