शनिवार, 14 मार्च 2015

तख्तापलट (लघुकथा )

सृष्टि सृजन कर आराम फरमा रहे ईश्वर के मन में आज फिर से सृष्टि को देखने का मन हो आया ऐसे , जैसे किसी पिता को विदा की हुई बेटी को देखने का मन हो जाये ।

अवाक थे धरती पर आकर क्योंकि उनकी उदासीनता की वजह से कुछ साइंटिस्टों ने उनसे उनका आस्तित्व छीन लिया था ।
ईश्वर का तख्तापलट  हो गया था ।

कान्ता राॅय
भोपाल

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