चुप हो की मेरी खामोशी भी बात करती है
तेरी निगाहों से मेरी निगाहें भी बात करती है
तेरे अक्स में मेरा अक्स इस कदर कायम है
हैरा हूँ फिर भी यह भूलने की बात करती है
कई बार पढा, पढकर चूमा तेरे खत को मैने
पलकें झुकती है हर हर्फ़ अब भी बात करती है
चौंक जाती हूँ पत्ते के खडकने से साहिब
तेरे आहट का दिल क्यों इंतजार करती है
चलो आज रो ले जरा जी भर कर हम भी
रूह को अब रोने से ही आराम मिलती है
कान्ता राॅय
भोपाल
कोई टिप्पणी नहीं :
एक टिप्पणी भेजें