अशोक के गैरहाजिरी में वो अचानक से कभी भी सुनिता के घर धमक पडते थे ।
सुनिता को ना चाहते हुए भी उनकी खातिर करनी पडती थी । मजाक के रिश्ते का वास्ता देकर बदतमीजी भी कर जाते थे कई बार । बेटी के ससुर जो ठहरे ।
अशोक को कई बार चाह कर भी बता नहीं पाती थी । बेटी की खुशियों का ख्याल आ जाता था ।
दामाद जी अपने माता पिता के लिए श्रवण कुमार थे । बेटी से भी नहीं बाँट सकती थी अपनी परेशानी । सुनिता के गले में दिन रात हड्डी फँसी रहती थी ।
आज जैसे ही दोपहर के नियत समय में घंटी बजी तो सुनिता ने बडे आराम से दरवाजा खोला और उनको सप्रेम अंदर आने के लिए कहा ।
घर के अंदर बहुत सारे बच्चे खेल रहे थे । उसने अपने घर में झूला घर खोल लिया था ।
सुनिता ने गले में फँसे हड्डी को निकाल फेंका था ।
कान्ता राॅय
भोपाल
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