गुरुवार, 12 नवंबर 2015

धर्म का निर्वाह /लघुकथा


सालों गुजर गये थे , मोहित विदेश से वापस नहीं लौटे ।
रोज फोन का आना , धीरे - धीरे हफ्तों का अंतराल लेते हुए , महीनों में बदल गया ।
पतिव्रता अपने धर्म का निर्वाह कर ही रही थी कि आज आॅफिस में काम के दौरान अशोक दोस्ती से जरा आगे बढ़ गये ।
उसने भी इन्कार नहीं किया ।
वह संतुष्ट थी । आज बहुत दिनों बाद वह सोई थी ।

कान्ता राॅय
भोपाल

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