गुरुवार, 12 नवंबर 2015

विपरीत समय काल /कविता

शोर उठा
रावण जल रहा है
आँखें फाड़ -फाड़
चारों ओर देखा
क्यों बार - बार
राम ही जलते हुए
दिखाई दिये
रावण नहीं वहाँ तो
राम जल रहे थे
बुराई हँस रही थी
सच्चाई जल रही थी
सत्य का हानि
बुराई की विजय
विपरीत समय काल
स्वंय पर अविश्वास
अडिग रहें हर हाल
भले राम जले
भले रावण करें अट्टहास
हम रहें बस
स्वंय को संभाले
हम ना जले
राम की तरह
बचना होगा
रावण के हर प्रहार से
धर्म विजय मुश्किल है
अधर्म पताका झिलमिली है
संताप का कर्ज़ चुकायें
झिलमिली से बच बचायें
भले राम जले
भले रावण करें अट्टहास
हम रहें बस
स्वंय को संभाले ।
कान्ता राॅय
भोपाल

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