गुरुवार, 12 नवंबर 2015

खास रिश्ते का स्वप्न/लघुकथा


" ये क्या सुना मैने , तुम शादी तोड़ रही हो ? "
" सही सुना तुमने । मैने सोचा था कि ये शादी मुझे खुशी देगी । "
" हाँ ,देनी ही चाहिए थी ,तुमने घरवालों के मर्ज़ी के खिलाफ़ , अपने पसंद से जो की थी ! "
" उन दिनों हम एक दुसरे के लिए खास थे , लेकिन आज ....! "
" उन दिनों से ... ! , क्या मतलब है तुम्हारा , और आज क्या है ? "
"उनका सॉफ्स्टिकेटिड न होना , अर्थिनेस और सेंस ऑफ़ ह्यूमर भी बहुत खलता है। आज हम दोनों एक दुसरे के लिये बेहद आम है । "
" ऐसा क्यों ? " उस व्याह की उमंग और उत्तेजना की इस परिणति से वह चकित थी ।
"क्योंकि , दो घंटे रोज वाली पार्क की दोस्ती , पति के रिश्ते में हर दिन औंधे- मुँह गिरता है । "

कान्ता राॅय
भोपाल

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