गुरुवार, 12 नवंबर 2015

अंतःस्मरण (लघुकथा)


कैंसर का आखिरी चरण , अर्ध बेहोशी की हालत में , जिन्दगी की आखिरी साँस गिन रही थी वो । आॅक्सीजन मास्क भी अब निष्क्रिय सा प्रतीत हो रहा था ।
डूबते हुए लम्हों में कभी आँखें खोलती तो पल भर में बंद कर लेती । आई. सी. यू. वार्ड के बाहर बेटा -बहू , दामाद ,नाती -पोते सब आखिरी विदाई के वक्त साथ रहने की लालसा लिये उपस्थित थे ।
पति नम आँखों से माथे को सहलाते हुए उसे मरणासन्ना देख साथ - साथ बिताये धुप -छाँह जैसे समस्त पल , जिम्मेदारियों का सलीके से निर्वाह करने का भी स्मरण कर रहे थे ।
जाने क्या उस अर्ध बेहोशी में बड़बड़ाये जा रही थी । पति माथे पर हाथ रख उसको सम्बल दे रहें थे कि वो जोर से कराह उठी " सुशील , मै आपके बाँहों में मरना चाहती हूँ । "
" मम्मी ने अभी किसको याद किया है , ये सुशील कौन है ? " पास खड़ी बेटी के सवाल पर वे चौंक उठे ।
" सुशील जी , तुम्हारी मम्मी के कालेज के दोस्त है । "

कान्ता राॅय
भोपाल

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