गुरुवार, 12 नवंबर 2015

भरोसा तो है पर.../लघुकथा


होटल के कमरे में बुलाया जाना ....! कुछ तो खटका सा लगा था , लेकिन पूर्वाग्रहों के कारण हाथ आये चाँस को मिस करना नहीं चाहती थी ।
" क्या मै सचमुच सौभाग्यशाली हूँ " पता नहीं क्यूं , उनकी बातों पर विश्वास करने का मन हो आया । होटल की सीढ़ियां चढ़ते हुए मन में द्वंद जारी था ।
शहर में अगले हफ्ते से इनकी शुटिंग शुरू हो रही है , भैया भी कह रहे थे।
काॅलेज कैम्पस में उन्होंने कुछ अजब ही स्वर में पूछा था कि, --" आपको हमारी टीम पर भरोसा तो है ना ? "
" जी सर ,पूरा भरोसा है ,लेकिन इतने लोगों में सिर्फ मुझे ही ......"
" आप का चेहरा सुन्दर और फोटोजेनिक है । हम एक नेचुरल चार्म ढूंढते है चेहरे के अंदर और वो आपमें गजब का है । " उनकी आँख चमक गयी थी ।
" जी "
" याद रखियेगा , शाम को कमरा नम्बर २०६ "
तन्द्रा सीधे कमरा नम्बर २०६ के पास जाकर ही टूटी । बडी़ हिम्मत करके उसने दरवाजे पर नाॅक किया ।
दरवाजा उन्होंने ही खोला था । अंदर ठहाकों की आवाज गुँज रही थी व एक अजीब सी गंध आ रही थी ।
" अरे ,नताशा जी , बडी देर कर दी आपने । कई लोग बेताबी से इंतज़ार कर रहे है आपका । "
" सर ,मेरे भाईसाहब भी आप जैसे कलाकारों से मिलने के लिए बडे़ उत्सुक हो मेरे साथ ही आये है , आईये ना भैया ! "
" अरे , बृजमोहन....साहब... आप ...! " आवाज हलक में ही अटक गई ।

कान्ता राॅय
भोपाल

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