गुरुवार, 12 नवंबर 2015

बेरोजगारी / लघुकथा


कमरे में घुसते हुए वह अपनी चाल को संतुलित कर रहा था ,पर बैठते हुए थोडा़ लड़खड़ा गया ।
" आज इतनी देर कैसे कर दी आपने , कहाँ रह गये थे , खाना लगा दूँ ? " बाहर आॅफिस , घर में बेरोजगार पति , दोनों को ही काँच के बर्तन के समान संभालने की जिम्मेदारी भी वह बखूबी निभा रही थी कि आज ऐसे ....!
नजदीक जाकर गौर से देखी तो उनकी आँखें लाल हो रही थी । अचानक वह सोफे पर ही लुढ़क गया । एक पल के लिए उसकी धड़कन जैसे रूक गई ।
" क्या आपने ड्रग लिया है ...? "
" हाँ " अधनींदे ही वह लड़खड़ाती आवाज में जबाव दिया ।
" लेकिन क्यों , आपको किस बात का गम , मै तो हूँ ना सब करने के लिए ! "
" इसलिए तो ...! तुम नहीं समझोगी कामयाब पत्नी के नाकामयाब पति का दर्द ....." कहते हुए फिर से एक ओर लुढ़क गया ।


कान्ता राॅय
भोपाल

कोई टिप्पणी नहीं :

एक टिप्पणी भेजें