गुरुवार, 12 नवंबर 2015

कैश बाॅक्स के नजारे/कविता

साफ़ नीला आसमान
सफेद रूई सा हल्का
बिलकुल हल्का ,
हल्का वाला सफेद बादल
कभी बहुत भारी सा हो जाता है
वक्त रेशम सी ,
रेशम सी मुलायम वक्त
फिसलती हुई ,सरकती हुई
रेशमी सा एहसास देती हुई गुजर जाती है
वक्त के वजूद में
जाने क्यों पहिए होते है
जो दिखाई नहीं देते पर ब्रेक नहीं होते है
शायद ब्रेक भी रहें हो कभी लेकिन
आजकल वक्त नहीं रूकता
यहाँ बाजार में बहुत भीड़ है
यह भीड़ कभी खत्म नहीं होती
यहाँ वक्त का कोई आस्तित्व नहीं है
रूई के फाये सी हल्की बादलों को
कोई नहीं देखना चाहता
वक्त नहीं है बाजार में किसी को आसमान देखने की
और चाहत नहीं है
उनको चाहत की क्या जरूरत
नीला आसमान तो
उनके दायरे में ही सिमटा हुआ जो होता है
वो सिर्फ कैश बाॅक्स की तरफ देखते है
नीला आसमान नहीं देखते
रूई के फाये सी हल्की बादलों को नहीं देखते
सिर्फ कैश बाक्स की तरफ देखते है
कैश बाॅक्स में उन्होंने
नीले आसमान को बंद करके रखा है
जब मर्ज़ी निकाल लेते है
जब मर्ज़ी देख लेते है ।
क्या जरूरत उन्हें बसंत की
क्या जरूरत उन्हें सावन और सुगंध की
ठहर कर क्यों देखे भला
वो तो सारे मौसमों को
अपने कैश बाॅक्स में बंद रखते है
जब फुरसत मिलती है काम से
जब मन करता है आराम से
कैश बाॅक्स में से सारे नजारे निकाल लेते है
और जी लेते है जब तब अपने मौसम को

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