गुरुवार, 12 नवंबर 2015

अमीरों की बैसाखी (लघुकथा)


" तुम्हारे नम्बर तो मुझसे कम आये थे ना ! फिर ये एडमिशन .... ? "
" रहने दो अब ये सब पूछना - पूछाना ,लो पहले मिठाई खाओ , आखिर तुम्हारा जिगरी दोस्त तो डाक्टर बन रहा है ना ! "
" मतलब ? "
" अरे नहीं समझे अब तक क्या ! वही पुरानी शिक्षा नीति की घटिया चालबाज़ी , डोनेशन ! और क्या ! "
" लेकिन तुम तो कहते थे डोनेशन देकर नहीं पढोगे । अपने कोशिशों की नैया पर सवार रहोगे ! सो , उसका क्या ? "
" कोशिशों की नैया ! हा हा हा हा ....वो सब स्कूली बातें थी । "
" स्कूली बातें ! हाँ , सही कह रहे हो यार , गरीबों के शरीर पर कोढ़ बन चिपका ये डोनेशन ! अमीरों की बैसाखी ही है उनको विद्वान और प्रतिष्ठित बनाने की । "

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